Emotional Story: वक्त कभी लौटकर नहीं आता

बारिश की रिमझिम बूंदें खिड़की की कांच से टकरा रही थीं, और कमरे में पसरा सन्नाटा किसी पुराने जख्म की तरह चुभ रहा था। 45 वर्षीय अर्जुन एक पुराने लकड़ी के झूले पर बैठा, हाथ में एक धूल भरा एल्बम थामे हुए, बीते वर्षों की तस्वीरों को निहार रहा था। हर तस्वीर के पीछे एक कहानी थी — कुछ अधूरी, कुछ भूली-बिसरी, और कुछ ऐसी जो अब भी दिल में गूंजती थी।

उसके सामने रखी टेबल पर कुछ पुरानी चिट्ठियाँ और एक जर्जर डायरी पड़ी थी, जिन्हें उसने सालों पहले बिना पढ़े अलमारी में बंद कर दिया था। लेकिन आज न जाने क्यों, वो सबकुछ फिर से खोलने का मन बना बैठा था। शायद वक्त ने उसे अकेला कर दिया था या शायद पछतावे ने उसे यादों की गिरफ्त में ले लिया था।

यह कोई साधारण कहानी नहीं थी। यह एक Emotional Story थी — उस बेटे की, जो अपने सपनों के पीछे भागते-भागते उन रिश्तों से दूर हो गया, जो सबसे करीब थे। आज वही बेटा, Success की ऊँचाइ पर बैठा, उन सभी पलों को वापस पाना चाहता था जो कभी उसके पास थे… लेकिन अब वो पल सिर्फ यादें थीं, और एक एहसास — जो कभी वक्त लौटकर नहीं आता।

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Emotional Story
Emotional Story: वक्त कभी लौटकर नहीं आता

बचपन और पारिवारिक जीवन

अर्जुन का बचपन किसी सामान्य मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की तरह था—छोटा-सा घर, जहां प्यार कम नहीं, बस वक्त और पैसे की कमी रहती थी। चार लोगों का वह संसार बेहद सीमित था, लेकिन उसमें भावनाओं की कोई सीमा नहीं थी। पिता राजकुमार एक सरकारी बाबू थे, सख्त स्वभाव के, लेकिन अंदर से बेहद नरम दिल के इंसान। माँ “सरला देवी” एक घरेलू महिला थीं, जिनके आँचल में दुनिया की सबसे बड़ी सुरक्षा छुपी होती थी।

अर्जुन की छोटी बहन “गुड़िया” उसकी दुनिया थी। दोनों स्कूल से लौटने के बाद आम के पेड़ के नीचे बैठकर अपनी-अपनी दिनचर्या सुनाया करते। माँ रोज दोपहर में खिचड़ी बनाती थीं, जिसमें घी की एक बूंद और माँ का प्यार हमेशा होता था। उस छोटे से घर में टीवी भले देर से आया हो, लेकिन रिश्तों की गर्माहट कभी कम नहीं हुई।

शाम को जब पिता काम से लौटते, तो अर्जुन दौड़कर उनका बैग लेता, लेकिन उनकी आँखों में हमेशा अनुशासन की एक चमक होती। अर्जुन उन्हें अक्सर कठोर समझता था, पर उसे क्या पता था कि वही कठोरता आगे चलकर जिंदगी की सबसे मजबूत नींव बनेगी।

यह वही दौर था जब जिंदगी आसान थी, सपने छोटे थे और खुशियां सस्ती। लेकिन उस मासूमियत भरे बचपन को अर्जुन ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। वो समय अब किसी पुराने Postcard की तरह याद आता है — रंग हल्के पड़ चुके हैं, पर Emotion अब भी उतने ही गहरे हैं।

कभी-कभी एक Emotional Story वहीं से शुरू होती है, जहाँ से हम मानते हैं कि कुछ खास नहीं था — और बाद में समझ आता है, असल में वही सबसे खास था।

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जवानी और महत्वाकांक्षा

समय बीता, और बचपन की मासूमियत अब जवानी की बेचैनियों में बदलने लगी। अर्जुन अब कॉलेज में था—तेज, आत्मविश्वासी, और सपनों से लबरेज। वो बड़े शहरों की चकाचौंध से प्रभावित था, और उसे लगता था कि उसकी असली पहचान वहीं कहीं छुपी है। किताबों से ज्यादा उसे लगता था कि जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है — सफल होना, वो भी जल्द से जल्द।

पिता का अनुशासन अब उसे बंधन लगने लगा था, और माँ की ममता—कमजोरी। बहन की बातें अब बचकानी लगती थीं, और उस छोटे से घर की दीवारें—जैसे उसकी उड़ान को रोक रही हों।

एक दिन अर्जुन ने बड़ा फैसला लिया। उसने माँ-बाप से बिना कुछ कहे, अपने सपनों की गठरी उठाई और मुंबई की ट्रेन पकड़ ली। उसके पास ना ज्यादा पैसे थे, ना ठिकाना, पर सीने में आग थी—खुद को साबित करने की।

माँ चौखट पर खामोशी से खड़ी थीं, निगाहें दूर जाते अर्जुन पर टिकी थीं। उनकी आँखों में डर नहीं, बल्कि एक शांत इंतजार की छाया थी। अर्जुन बिना पीछे देखे बढ़ता गया। उसे पूरा विश्वास था कि जब वह सफलता हासिल करेगा, तो सब अपने आप सही हो जाएगा।

मुंबई की भीड़ में खो जाने से पहले उसे एक चिट्ठी मिली थी—पिता की लिखी हुई। मगर अर्जुन ने उसे कभी नहीं पढ़ा। वो समझता था कि उसमें वही पुरानी नसीहतें होंगी, वही पुराने डर। उसने चिट्ठी को फाड़कर फेंक दिया — जैसे किसी पुराने रिश्ते को हमेशा के लिए दफन कर दिया हो।

यही वो मोड़ था जहाँ एक और Emotional Story जन्म लेती है — जब हम आगे बढ़ने की चाह में पीछे छूटते रिश्तों की अहमियत खो बैठते हैं।

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संघर्ष और सफलता

मुंबई—एक शहर जो सपनों को पंख भी देता है और जमीन से रगड़ता भी है। अर्जुन के लिए यह शहर कोई आसान किताब नहीं था, बल्कि एक कठिन परीक्षा थी। शुरुआत के दिन मुश्किल थे—भूखे पेट सोना, स्टेशन पर रात गुजारना, और न जाने कितनी बार नौकरी के लिए मना सुनना।

कभी-कभी माँ की याद इतनी जोर से आती कि वो एक कोना पकड़ कर चुपचाप रो लिया करता। पर Ego उसका सबसे बड़ा दुश्मन था—जिसने हर बार उसे कॉल करने से रोका। वो खुद से कहता, “अब नहीं… एक दिन जब सब कुछ होगा, तब लौटूंगा।” लेकिन वो दिन कभी तय नहीं होता था।

कुछ महीनों की तलाश के बाद अर्जुन को एक छोटे से Startup में नौकरी मिली। उसने Customer Service से अपने career की शुरुआत की। कड़ी मेहनत, समर्पण और तेज सोच ने उसे धीरे-धीरे ऊँचाइयों तक पहुँचाया। सिर्फ पाँच साल में उसने अपनी खुद की एक मार्केटिंग कंपनी शुरू कर दी। आज उसके पास एक शानदार ऑफिस है, Luxury कार है, और बैंक अकाउंट में लाखों रुपए हैं—जिसे कभी वह अपना “सपना” मानता था, अब वही उसकी “हकीकत” बन चुका है।

लेकिन इस सफलता के शोर में कहीं न कहीं रिश्तों की आवाज गुम हो चुकी थी। माँ-बाप की तस्वीरें उसकी अलमारी में थीं, पर हालचाल लेने की फुर्सत नहीं। बहन की शादी की खबर उसे फेसबुक से मिली, लेकिन उसने सिर्फ ‘Like’ बटन दबाकर आगे बढ़ जाना ही काफी समझा।

एक दिन उसके ऑफिस में सफाई करते वक्त एक पुराना लिफाफा हाथ लगा—वही चिट्ठी जिसे कभी अर्जुन ने फाड़ा था। उसमें से आधा हिस्सा पढ़ने लायक बचा था:

“बेटा, तुझे जाने दिया क्योंकि तेरा सपना तुझसे बड़ा था। पर जब भी लौटना हो, तेरा कमरा अब भी वैसा ही है…”

उस दिन अर्जुन की आँखों से बहने वाले आँसू केवल पछतावे के नहीं थे, बल्कि उन संबंधों की टीस भी समेटे हुए थे, जिन्हें उसने अपनी ही चाहतों के पीछे कहीं खो दिया था।

ये वही मोड़ था, जहाँ Emotional Story की गहराई और भी बढ़ जाती है। क्योंकि जिंदगी में सबसे बड़ी जीत तब अधूरी रह जाती है, जब उसे साझा करने वाला कोई न हो।

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Emotional Story
Emotional Story: वक्त कभी लौटकर नहीं आता

पछतावा और अकेलापन

सफलता अर्जुन के कदम चूम चुकी थी, लेकिन दिल के किसी कोने में खालीपन अब शोर करने लगा था। वो ऑफिस में सबसे चर्चित चेहरा था, लेकिन घर लौटने पर दरवाजा सिर्फ चाबी से खुलता था, किसी की आवाज से नहीं।

हर शाम वो अपने ग्लास वॉल वाले ऑफिस से नीचे की रफ्तार देखता और सोचता — “कहाँ पहुंचा हूँ?” पर जवाब कभी नहीं मिलता। अब माँ की खिचड़ी की महक याद आती थी, और पिता की डांट में छुपा प्यार भी। बहन की खिलखिलाहट एक पुराने कैसेट की तरह कानों में गूंजती थी — लेकिन असल जिंदगी में सब गायब था।

एक दिन जब अर्जुन अपने पुराने दस्तावेज इकट्ठा कर रहा था, तो उसे एक डिब्बा मिला — मिट्टी से सना हुआ, लेकिन बेहद कीमती। उसमें माँ की आखिरी चिट्ठी, बहन की शादी का कार्ड, और पिता की एक छोटी डायरी थी। माँ की चिट्ठी में लिखा था:

“तुझे कामयाब बनते देखना हमारी तमन्ना थी, मगर ये कभी नहीं चाहा था कि तेरी कामयाबी हमें तुझसे दूर कर दे…”

वो चिट्ठी पढ़ते ही अर्जुन के भीतर कुछ बिखर गया। एक अजीब सी खालीपन उसे घेरने लगी। क्या यही है असली कामयाबी? क्या आगे बढ़ने का मतलब पीछे अपने ही लोगों को छोड़ जाना होता है?

अब वह हर दिन अकेले अपने आलीशान घर की खामोश दीवारों से बातें करता था। उसे महसूस होने लगा कि जिन रिश्तों को उसने “समय के साथ संभाल लेंगे” कहकर टाल दिया था, वो अब लौटकर कभी नहीं आएंगे।

यही तो Emotional Story की सबसे तीखी सच्चाई होती है — कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिनका वक्त गुजर जाने के बाद वो सिर्फ यादों में ही रहते हैं, हकीकत में नहीं।

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वापसी और अधूरा घर

सालों की दूरी, सफलता की चकाचौंध, और अकेलेपन की तपन ने अंततः अर्जुन को झकझोर कर रख दिया था। वह अब उस उम्र में पहुँच चुका था जहाँ दिल शांति चाहता है, न कि तालियाँ। एक रात, माँ की चिट्ठी को सीने से लगाकर सोते हुए अचानक उसने निर्णय लिया — “अब लौटना है… चाहे जो भी हो।”

अर्जुन उस गाँव लौट आया जहाँ से उसका सफर शुरू हुआ था। गलियाँ और रास्ते अब भी वैसे ही थे, पर लोगों की निगाहों में अपनापन नहीं, सवाल तैर रहे थे। पुराने जान-पहचान वालों ने देखा तो कुछ ने हल्की मुस्कान के साथ अभिवादन किया, जबकि कुछ चुपचाप नजरें झुका कर आगे बढ़ गए — जैसे उनके भीतर भी कुछ अधूरा रह गया हो।

जब वह अपने पुराने घर के दरवाजे पर पहुँचा, तो उसे लगा जैसे दीवारें भी उससे कुछ कहना चाहती हैं। दरवाजा अब जंग खा चुका था, रंग उतर चुका था, और आँगन में उग आए पौधे गवाही दे रहे थे — बहुत समय बीत गया।

घर में कदम रखते ही अर्जुन पर यादों की बाढ़ सी आ गई। रसोई से उठती माँ की पहचानी सी खुशबू, पिता की मेज पर सजी किताबें, और बहन के पुराने खिलौने — सब कुछ वैसे ही था, जैसे वक्त थम गया हो। मगर अब उन चीजों में पहले जैसा जीवन नहीं था। वह कमरा जहाँ कभी माँ हर रात प्यार से पुकारती थी, अब सन्नाटे में डूबा था। अर्जुन चुपचाप उसी पुराने बिस्तर पर जा बैठा। उसकी आँखों से चुपचाप आँसू बहने लगे — न कोई आवाज थी, न कोई देखने वाला, बस एक दिल था जो अंदर ही अंदर टूट चुका था।

वो जानता था कि अब कुछ नहीं बदलेगा। न माँ लौटेंगी, न पिता की डांट सुनने को मिलेगी। बहन अब अपनी दुनिया में व्यस्त थी, और उसका अपना घर सिर्फ एक ढांचा बनकर रह गया था।

इस Emotional Story की सबसे कड़वी सच्चाई यही थी — लौटने का रास्ता तो मिल गया, लेकिन जिनके पास लौटना था, वो अब इस संसार में नहीं रहे।

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समापन (Conclusion)

अर्जुन अब अपने ही घर में एक अजनबी बन चुका था। दीवारें वही थीं, खिड़कियाँ वही थीं, लेकिन अब न वो आवाजें थीं, न वो रिश्तों की गर्माहट। रात के सन्नाटे में जब वह पुराने कमरे में लेटा, तो उसकी निगाहें छत पर टिक गईं — मानो वह किसी अनदेखे साये से चुपचाप क्षमा माँग रहा हो।

सुबह की धूप उस कमरे की फटी खिड़की से छनकर आई, लेकिन उस रोशनी में उजाला नहीं, सिर्फ एक सच्चाई थी — कि कभी वक्त लौटकर नहीं आता।

उसने माँ की चिट्ठियाँ एक-एक कर पढ़ीं, पिता की डायरी को छुआ, और बहन की तस्वीर को सीने से लगाया। आँखें बार-बार भर आईं।

वो जान चुका था कि जिंदगी में कुछ फैसले हम समय पर नहीं लेते, और जब लेने का वक्त आता है, तो जिंदगी हमें छोड़ चुकी होती है।

उसने एक आखिरी बार पूरे घर को देखा, हर कोने को, हर दीवार को… और एक कागज पर लिखा:

“अगर कोई बेटा ये पढ़ रहा हो, तो वक्त रहते लौट जाना… क्योंकि रिश्ते इंतजार नहीं करते।”

अर्जुन की यह Emotional Story सिर्फ उसकी नहीं, हर उस इंसान की कहानी है जो समय और सपनों की दौड़ में अपने अपनों को पीछे छोड़ आता है। यह कहानी हमें एक गहरी सीख देती है — कि सफलता की कोई कीमत नहीं होती, लेकिन रिश्तों की कीमत अगर चुकानी पड़े… तो वो उम्र भर का अफसोस बन जाती है।

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FAQs

Q: यह Emotional Story किस बारे में है?

Ans: यह Emotional Story एक बेटे अर्जुन की है, जो सफलता की तलाश में अपनों से दूर हो जाता है, लेकिन जब लौटता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।

Q: इस Emotional Story का मुख्य संदेश क्या है?

Ans: इस Emotional Story का संदेश है — रिश्तों को समय दीजिए, क्योंकि वक्त लौटकर नहीं आता।

Q: क्या यह Emotional Story सच्ची घटना पर आधारित है?

Ans: यह एक काल्पनिक कहानी है लेकिन इसके भावनात्मक तत्व असल जिंदगी से प्रेरित हैं।

Q: क्या ऐसी और भी Emotional Story मिल सकती हैं?

Ans: हाँ, हमारी वेबसाइट kahanikosh.com पर और भी Emotional Stories और प्रेरणादायक कहानियाँ उपलब्ध हैं।

2 thoughts on “Emotional Story: वक्त कभी लौटकर नहीं आता”

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